बुधवार, 1 अगस्त 2018

महान दलित लोक शाहिर अन्नाभाऊ साठे.......


आज महान लोक शाहिर अन्नाभाऊ साठे का जन्मदिवस है........
महाराष्ट्र और आसपास के राज्यों में अन्नाभाऊ साठे का नाम बच्चे-बच्चे की जुबां पर मिल जाएगाl इनका जन्म 1 अगस्त 1920 को महाराष्ट्र के सांगली जिले के वाटेगाँव में माँग नामक अछूत माने जाने वाली अनुसूचित जाति में हुआ था। अन्नाभाऊ अछूत to थे ही ऊपर से माँ-बाप बेहद गरीब थे । माँ- बाप ने स्कूल में दाख़िला तो कराया पर स्कूल के मास्टर कुलकर्णी (ब्राह्मण) गुरुजी के अत्याचारों के कारण केवल डेढ़ दिन ही स्कूल में टिक पाये और स्कूल छोड़ देना पड़ा। पैसे नहीं होने के कारण काम-धंधे की तलाश में अपने गाँव से बॉम्बे का सफर पैदल ही तय किया । बॉम्बे में वे मजदूर आंदोलनों और स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलनों से जुड़कर कम्युनिस्ट विचारधारा के संपर्क में आए तथा कम्युनिस्ट आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़ गएl उन्होंने अपनी कविता,कहानी और नाटकों से दलित-शोषितों को उनके अस्मिता की जुबान दीl अन्नाभाऊ ने 35 उपन्यास,12 कथासंग्रह, 10 पोवाड़े, 1 यात्रा वृतांत 14 तमाशा और 3 नाटक लिखे । उनके 8 उपन्यासों पर महाराष्ट्र में फ़िल्में भी बनी। उनकी रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन आदि विदेशी भाषाओँ में भी हुआ और हिंदी, गुजराती, बंगाली, तमिल, मलियाली, उड़िया आदि देशी भाषाओँ में भीl वे 'इंडो-सोवियत कल्चर सोसायटी' के निमंत्रण पर रूस भी गये थेl इस यात्रा का जिक्र उन्होंने अपने यात्रा वृतांत 'माझा रशियाचा प्रवास' में किया हैl वे संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन में भी सक्रिय सहभागी रहेl इस दौरान उन्होंने बेहद मार्मिक लावणी माझी मैनालिखी थी। अन्नाभाऊ साठे कम्युनिस्ट आंदोलन में थे पर वहां पर भी जातिवाद देखकर धीरे-धीरे उनका कम्युनिज्म से मोहभंग हो गया और वे अम्बेडकरवादी विचारधारा से सक्रिय रूप से जुड़ गये।
16 अगस्त 1947 को जब देश का सारा सवर्ण समाज आजादी के जश्न में सराबोर था तब कम्युनिस्टों के भारी विरोध के बावजूद उन्होनें बारिश में भीगते हुये बॉम्बे में 60 हजार लोगों की रैली निकाली और हुंकार भरी- ये आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी है। क्योंकि वे समझ रहे थे कि फिलहाल केवल ब्राह्मण-सवर्ण ही आजाद हुये हैं,दलित समाज तो अब भी गुलाम है। बाबा साहेब के निधन पर दलित-शोषितों के लिए अण्णाभाऊ ने लिखा था-
                          "जग बदल घालूनी घाव-सांगुनी गेले मला भीमराव,
                           गुलामगिरिच्या चिखलात-रुतूनी  बसला एरावत,
                           अंग   झाडुनी निघ   बाहेरी-  घे   बिनीवरती  घावl"
वर्ष 1959 में अन्नाभाऊ साठे ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'फकीरा' लिखी जो 1910 में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने वाले मांग जाति के क्रांतिवीर ‘फकीरा’ के संघर्ष पर आधारित थी उन्होंने यह पुस्तक डा. आम्बेडकर को समर्पित की थीl अन्नाभाऊ साठे ने स्कूली अनपढ़ होते हुये भी पढ़ने-लिखने की न केवल योग्यता हासिल की बल्कि दलित क्रांति का बहुत समृद्ध साहित्य भी रचा, जो आज भी अम्बेडकरवादियों को रास्ता दिखा रहा हैl कम्युनिस्ट आंदोलन की नकली क्रांति और खोखलेपन को समझने का उनसे बेहतर कोई उदाहरण नहीं है। उन्होंने पूरा जीवन अपने लोगों के लिए संघर्ष करते हुए मुफ़लिसी में गुज़ारा और कहा जाता है वे बहुत दिनों से भूखे थे और भूख के कारण ही 18 जुलाई 1969 को उनकी मौत हो गईl कभी सुनिए अन्नाभाऊ को आपको पता लगेगा दलित संघर्ष की आवाजें कितनी बुलंद और सच्ची होती हैंl
आपके यहाँ तक पहुँचने में हजारों-लाखों बहुजन नायकों का संघर्ष हैl महान जनकवि अन्नाभाऊ साठे को कोटि-कोटि अभिनंदन.........



महान बहुजन वीरांगना उदादेवी पासी

उदादेवी पासी  "हेट्स ऑफ ब्लैक टाइग्रेस..... उदा देवी पासी की अद्भुत और स्तब्ध कर देने वाली वीरता से अभिभूत होकर ज...